SHIQURDU 27: जिंदगी

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जिनको जल्दी थी, वो बढ़ चले मंज़िल की ओर

मैं समन्दर से राज, गहराई के सीखता रहा..!!

अकड होती तो, कब का टूट गया होता

 मैं था नाजुक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा…

 

152

कभी टूट गया कभी तोड़ा गया

सौ बार मुझे फिर जोड़ा गया

यूँ ही लूट लूट के और मिट मिट के

 बनता ही रहा हूँ मैं

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ज़मीं पर रह कर आसमान ढूँढ़ता रहा

अपनी ज़िन्दगी का मकाम ढूँढ़ता रहा

बहुत बेचैन सी  जिंदगी जी ली

ना  सुकून रहा,  ना आराम रहा

154

जिंदगी नदी सी बह गई मीलों कहीं..

देखता ही रह गया मैं घाट सा.. 

काश! मैं होता किनारा झील का

देख तो पाता उसे वर्षों खड़ा

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चलो हंसने की कोई, हम वजह ढूंढते हैं,

जिधर न हो कोई ग़म, वो जगह ढूंढते हैं !

बहुत उड़ लिए ऊंचे आसमानों में यारो,

चलो जमीं पे ही कहीं,  सुकून ढूंढते हैं !

 

 

  • Shiqurdu is a collection of thoughts. Although an odd sounding name, but felt appropriate for the collection.

 

  • These are simplified quotes in Hurdu (Hurdu being a mix of Hindi and Urdu akin to Hinglish i.e., hindi and english). Although in some cases the language has been simplified but attempt has been made to retain the thought and the poetic flavor.

 

  • These thoughts have been picked up from various publications. Credit goes to all the original writers who penned down these deep meaning messages.

 

 

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2 Replies to “SHIQURDU 27: जिंदगी”

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